hindisamay head


अ+ अ-

कविता

चींटी

प्रफुल्ल शिलेदार


एक चींटी
सीधी मेरे सामने खड़ी होकर
जोर-जोर से चिल्ला कर बता रही है
मेरे पीठ पीछे जो बाँध है
वह ऊँचा हो रहा है
और फूटने वाला है मेंढक के पेट की तरह
चींटी की आवाज को
मैं हमेशा अनसुना करता हूँ
मन ही मन हँसता रहता हूँ
उसका व्याकुल होकर बताना
उसी के जैसा हल्का लगता है
बिल्कुल धूल की खाक जैसा हल्का
उसका हमेशा मुझे इस तरह बताना
मुझे परेशान करता है
उसकी हँसी मैं सह नहीं सकता
और तो और वह इतनी महीन है
कि उसे मैं
अपने पाँव के गठीले अँगूठे से
रगड़ भी नहीं सकता
फिर भी वह हमेशा दिखती रहती है
इतनी साफ कि मानो किसी लेंस से उसे देख रहा हूँ
शायद मेरे ही आँख की पुतली पर
वह रहती होगी
मैं उसे नजरअंदाज भी नहीं कर सकता
क्योंकि वह जोर-जोर से जो कहती है
वो सब धीरे-धीरे सच साबित होता है।


(मराठी से हिंदी अनुवाद स्वयं कवि के द्वारा)
 


End Text   End Text    End Text